इंदौर. जीन एक्सपर्ट मशीन, एल पीए टेस्ट के बाद अब प्रदेश की एकमात्र लिक्विड कल्चर लैब शुरू होने के बाद इंदौर देश के उन 25 शहरों में शामिल हो गया है जहां टीबी की जांचों व इलाज की आधुनिक सुविधा मरीजों को मिलने लगेगी। यह काम इसी माह से शुरू हो जाएगा। टीबी के कई मरीज ऐसे होते हैं, जो कि कोर्स पूरा करने के बाद दोबारा चैकअप नहीं करवाते। उनमें ड्रग रेजिस्टेंट टीबी का खतरा होता है। एक टीबी का मरीज यदि इलाज शुरू नहीं करवाता तो वह अपने साथ 15 और लोगों को टीबी का मरीज बना सकता है। टीबी के 100 में से 6 से 7 ऐसे मरीज होते हैं, जिन पर टीबी की आम दवाई असर नहीं करती। ऐसे में इन मरीजों को ड्रग रेजिस्टेंट टीबी कैटेगरी में रखा जाता है। इन मरीजों को अलग कैटेगरी में रखा जाता है। ड्रग रेजिस्टेंट टीबी कैटेगरी 4 में आती है। इसमें यदि टीबी मरीज दवाइयां खा रहा है, और दवाइयां खाने के बावजूद भी मरीज पर असर नहीं पड़ रहा तो ऐसे मरीजों को ड्रग रेजिस्टेंट टीबी की कैटेगरी में रखा जाता है। इस बीमारी का इलाज का कोर्स आम टीबी से अलग होता है। इसे रोकने के लिए सरकार ने नेशनल ड्रग रेजिस्टेंट सर्वे करवा रही है। ड्रग रेजिस्टेंट टीबी का समय पर पता लगाने के उद्देश्य से सेंट्रल टीबी डिवीजन, इंटरनेशनल यूनियन अगेंस्ट टीबी एंड लंग्स डिसीज ग्लोबल फाउंड अगेंस्ट एड्स, टीबी एंड मलेरिया सामूहिक तौर पर सर्वे करने जा रहे हैं। बेंग्लोर में नेशनल ड्रग रेजिस्टेंट टीबी की मीटिंग में यह निर्णय लिया गया है। तीन महीने चलने वाली इस सर्वे में वह लोग शामिल किए जाएंगे, जिनके अंदर इस बीमारी के लक्षण नजर आते हैं। सर्वे के दौरान जिन लोगों के बलगम के सैंपल जांच के लिए लिए जाएंगे, उनकी जांच नेशनल लैब बैंगलुरू में होगी। इसके बाद कन्फर्म जांच के लिए सैंपल सुपर नेशनल लेबोरेट्री में भेजा जाएगा। देश के 120 सेंटरों पर होने वाले इस सर्वे में इंदौर भी एक सेन्टर है। जल्द ही हुकमचंद पॉलीक्लिनिक में यह सर्वे शुरू होगा। इंदौर के अलावा मंडला, बड़वानी, रीवा, सतना भी इस सर्वे में शामिल हैं।
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