गुजरात के सूरत में कांग्रेस पार्टी के पास ख़ुश होने की एक वजह है. पाटीदार आंदोलन, नोटबंदी और जीएसटी ने यहां के लोगों में बीजेपी के ख़िलाफ़ असंतोष की भावना पैदा कर दी है.लोगों के विरोध ने कांग्रेस को उत्साहित दिया है. उसे उम्मीद है कि दो दशक के अंतराल के बाद वो यहां अपना खाता खोलने में कामयाब हो सकती है.सात नवंबर को राहुल गांधी की रैली में आई भीड़ को देखकर कांग्रेस के नेताओं ने राहत की सांस ली है. कांग्रेसी नेताओं का मानना है कि पाटीदारों का समर्थन उनके साथ है, साल 2015 की तरह इस बार भी उनका वोट कांग्रेस को ही मिलेगा.
25 साल के बाद कांग्रेस ने नगर निगम चुनाव में वरच्छा रोड, कमरेज, सूरत उत्तर और कटारगाम जैसे पाटीदारों के दबदबे वाले इलाक़ों में जीत दर्ज करने में कामयाब रही थी. साल 2015 के सूरत नगर निगम चुनाव में कांग्रेस को 36 सीटों पर जीत मिली थी. साल 2010 में उसे सिर्फ 14 सीटों से संतोष करना पड़ा था.लोकल नेताओं और पाटीदारों का मानना है कि 12 में कम से कम 7 सीटें ऐसी हैं, जहां बीजेपी के लिए जीत आसान नहीं होगी. मनोज गांधी करीब 20 साल से सूरत में चुनावों को करीब से देखते आए हैं.बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने बताया कि सूरत उत्तर, लिंबायत औऱ कटारगाम जैसे इलाकों में कड़ी टक्कर होने की उम्मीद है. अभी तक यहां चुनाव एकतरफ़ा ही रहे हैं.
मनोज के मुताबिक, “सात नवंबर को हुई राहुल गांधी की रैली से ये पता चलता है कि कांग्रेस ने सूरत में ज़मीन हासिल की है. पाटीदारों का असंतोष और उसके बाद नोटबंदी और जीएसटी ने बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं.”वरच्छा रोड, करंज, कटारगाम, कमरेज और सूरत दक्षिण में पाटीदार वोटरों का दबदबा है. कांग्रेस ने जिन 22 वार्डों में साल 2015 में नगर निगम चुनाव में जीत हासिल की थी, उनमें ज़्यादतर वार्ड इन्हीं निर्वाचन क्षेत्रों में हैं.
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