एक ‘काल्पनिक’ कहानी पर बनी और अब तक अनदेखी फिल्म इतनी अहम हो गई है कि कई-कई मुख्यमंत्री कूद पडे हैं. कांग्रेस के कैप्टन अमरिंदर सिंह का इसमें शामिल होना दिखाता है कि यह एक पार्टी की बीमारी नहीं है. वैसे भी कांग्रेस का किसी से शायद ही कोई वैचारिक मतभेद हो, करणी सेना से भी नहीं है.करणी सेना ने इस देश में उन्माद-उपद्रव की राजनीति करने वालों को महाराष्ट्र में शासन चलाते देखा है, बालासाहेब ठाकरे ने बहुत पहले स्थापित कर दिया है कि बहुसंख्यकों की भावनाओं की लहरों पर सवार होकर बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है.मज़े की बात ये भी है कि इसमें क़ायदे-क़ानून की चिंता करने की बिल्कुल ज़रूरत नहीं होती. शिव सेना की राजनीतिक सफलता से प्रेरित होकर अनेक संगठन बने हैं जिनके नाम में सेना शब्द ज़रूर है, करणी सेना भी उन्हीं में से एक है.
दबंग जातियों का शक्ति प्रदर्शन कोई नई चीज़ नहीं है, लेकिन दलितों के संगठित होने की स्थिति में उन पर चंद्रशेखर रावण की तरह राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून लगाया जा सकता है, ख़राब स्वास्थ्य के बावजूद महीनों जेल में रखा जा सकता है.
फूलन देवी को फ़िल्म में पूरी तरह नग्न दिखाया जा सकता है, उससे किसी की भावना आहत नहीं होगी क्योंकि मल्लाह सिनेमाघर तोड़ने की हालत में नहीं थे, इसलिए सरकार को उनकी चिंता करने की ज़रूरत नहीं पड़ी.राजस्थान की मुख्यमंत्री वादा कर रही हैं कि बिना बदलाव के फ़िल्म रिलीज़ नहीं होगी, उन्होंने सूचना-प्रसारण मंत्री को चिट्ठी लिखी है कि बिना मन-मुताबिक़ बदलाव के फ़िल्म रिलीज़ न होने दी जाए जबकि फ़िल्म बनाने वालों ने ख़ुद ही रिलीज़ को टाल दिया है.राजपूती शान वाले लोग ‘जौहर’ का महिमामंडन कर रहे हैं, उनमें से ज्यादातर लोग परंपरागत रूप से सती प्रथा और बाल विवाह के समर्थक रहे हैं. उनकी नज़र में आक्रमणकारी से लड़कर मरने वाली लक्ष्मीबाई से ज़्यादा सम्मान की पात्र आत्महत्या करने वाली पद्मावती हैं.
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने लक्ष्मीबाई को तो राष्ट्रमाता नहीं कहा है.
Leave a Reply