इस करेंसी के साथ देश की प्रतिष्ठा जुड़ी होती है और जैसे-जैसे करेंसी गिरती है, तैसे-तैसे देश की प्रतिष्ठा गिरती है…..”
तब लोकसभा में भाजपा की नेता और अब विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ये भाषण अगस्त 2013 में दिया था और वो रुपये का भाव डॉलर के मुक़ाबले लगातार गिरने और 68 के पार पहुँचने पर वित्त मंत्री पी चिदंबरम के स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं थी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से जवाब की मांग कर रहीं थीं.
आज देखिए, रुपये की कीमत जिस तेज़ी से गिर रही है और कभी-कभी तो लगता है कि दिल्ली सरकार और रुपये के बीच में कंपीटीशन चल रहा है, किसकी आबरू तेज़ी से गिरेगी. देश जब आज़ाद हुआ तब एक रुपया एक डॉलर के बराबर था. जब अटलजी ने पहली बार सरकार बनाई, तब तक मामला पहुँच गया था 42 रुपये तक, जब अटलजी ने छोड़ा तो 44 रुपये पर पहुँच गया था, लेकिन इस सरकार में और अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री के कालखंड में ये 60 रुपये पर पहुँच गया है.”
नरेंद्र मोदी का ये भाषण पाँच साल पुराना था जब वो गुजरात के मुख्यमंत्री थे. लेकिन उसके बाद से हिंदुस्तान की सियासत में काफ़ी कुछ बदल चुका है, आर्थिक हालात में भी बहुत उठापटक हुई है, लेकिन कभी गिरते रुपये पर मनमोहन सरकार को घेरने वाले ये नेता इन दिनों रुपये में गिरावट को लेकर चुप्पी साधे हुए हैं.
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