मेडिसिटी गुड़गांव के ईएनटी डिपार्टमेंट के चेयरमैन डॉक्टर के के हांडा ने बताया कि ‘ज़्यादातर लोग मौसमी एलर्जी से परेशान हैं। नाक से पानी गिर रहा है, छाती जकड़ गई है, सांस लेने में परेशानी है, कान और गले में दर्द है और कुछ मामलों में आंखों में जलन और खुजली की शिकायत भी है’।
गला-नाक-आंख-कान यह सारे अंग आपस में जुड़े हैं, इसलिए अगर एक में भी परेशानी हुई तो बढ़कर बाक़ी तक भी पहुंच सकती है। इनमें से ज़्यादातर परेशानियां प्रदूषण से जुड़ी हैं।
दिवाली के आस-पास प्रदूषण खतरनाक स्तर तक बढ़ जाता है क्योंकि पटाखे छुटाए जाते हैं। गांव में पुआल जलाई जाती है और मौसम में नमी आने लगती है जो प्रदूषण और धुएं को ऊपर उठने से रोकती है।
दमा के मरीजों को सबसे ज़्यादा नुकसान
दुनिया भर के दमा मरीजों में से दस फीसदी भारत में रहते हैं। डब्ल्यूएचओ पहले ही बता चुका है कि दुनिया के सबसे गंदी आबोहवा वाले 20 शहरों में से 13 शहर भारत में हैं। ऐसे में हवा में रुका यह जहर सांस के जरिए हमारे शरीर में प्रवेश कर जाता है।
सर गंगाराम अस्पताल के सीनियर चेस्ट कंसल्टेंट डॉक्टर बॉबी भलोत्रा के मुताबिक ‘इतने प्रदूषण में दमा के मरीज़ को अटैक आ सकता है और कभी-कभी समय पर मदद न मिले तो दमा का अटैक जानलेवा भी हो सकता है’।
अब चेतना जरूरी
डॉक्टर भलोत्रा ने बताया कि इतना प्रदूषण सिगरेट के धुएं से भी कई गुना ज़्यादा खतरनाक है। उनका मानना है कि ‘अगर हम अब भी नहीं चेते और प्रदूषण ऐसे ही बढ़ता रहा तो अगले 15-20 साल में छोटी उम्र में ही फेफड़ों के कैंसर के मामले सामने आने लगेंगे’।

डॉक्टर की सलाह है कि अगर सांस में थोड़ा भारीपन महसूस हो, छाती और गले में घर-घर की आवाज आए तो देर न करें और तुरंत अपना ब्लड प्रेशर और छाती का चेकअप कराएं।
एहतियात की जरूरत
सीओपीडी (क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मनरी डिज़ीज़) के मरीज़ों को और भी एहतियात रखने की जरूरत है। उनके लिए डॉक्टर की सलाह है कि ‘अपनी दवाई लगातार लेते रहें और इन्हेलर हमेशा साथ रखें’।
प्रदूषण का असर त्वचा पर भी पड़ता है। महक डर्मा एंड सर्जरी क्लीनिक की डायरेक्टर डॉक्टर शेहला अग्रवाल ने बताया कि इस मौसम में छपाकी यानी त्वचा पर लाल चकत्ते की शिकायत वाले मरीज ज़्यादा आ रहे हैं।
सुबह की सैर से बचें
डॉक्टर के मुताबिक ‘इस मौसम में तड़के पांच या छह बजे सैर पर जाने से बचें क्योंकि इस समय मौसम में सबसे ज़्यादा नमी होती है और फूल खिलते हैं जिनसे निकले पराग कण नमी के चलते हवा में ही रुके रह जाते हैं। साथ ही इस समय की ठंडी हवा त्वचा को खुश्क बनाती है’।
डॉक्टर की सलाह है कि ”अगर बहुत ज़रूरी हो तो सात बजे सैर पर जा सकते हैं, लेकिन उससे पहले बाहर जाने से बचें’।
बच्चों का बचाव करें
डॉक्टर का कहना है कि ‘कोशिश करें कि सिर्फ़ धूप के दौरान बाहर रहें। न बहुत सुबह बाहर निकलें और न ही शाम तक बच्चों को बाहर खेलने दें। बंद वाहन जैसे गाड़ी, बस, मेट्रो में बाहर जाएं।’
डॉक्टर के के हांडा आगे बताते हैं कि ”सार्वजनिक जगहों में मास्क का इस्तेमाल करें। कोशिश करें कि एक बार के बाद फेंकने वाले (डिस्पोज़ेबल) मास्क का इस्तेमाल करें। आंखों को बचाने के लिए ज़ीरो पावर का चश्मा लगा सकते हैं।
‘दिवाली के दौरान ज़्यादा मीठा, तला-भुना और डिब्बा बंद खाना खाने से इम्युनिटी भी कमज़ोर होती है इसलिए खाने-पीने का भी ध्यान रखें।