इन्हें शिक्षा कोई बहुत ज्यादा नहीं मिली, लेकिन एक सोच थी कि दूसरों से कुछ अलग किया जाए। उसी सोच का ही परिणाम था कि आज वे ऐसे आविष्कार में लगे हैं, जो न केवल उनके लिए बल्कि समाज के लिए भी बढिय़ा उदाहरण बन चुके हैं।
फिर चाहे बात स्क्रैप से वाहन बनाने की हो या फिर आक्सीजन से वाहन चलाने की। यही नहीं सातवीं पास किसान द्वारा लीवर सिद्धांत पर काम कर कम बल को बढ़ाकर कई गुना करने के मॉडल को देख कई इंजीनियर भी हैरत में पड़ गए।
दीनबंधु सर छोटूराम विज्ञान एवं प्रौद्योगिकि विवि, मुरथल में गुरुवार को ऐसे ही ‘वैज्ञानिकोंÓ का मेला देखने को मिला। प्रतिभागियों की इस मेहनत को देखने के लिए खुद तकनीकी शिक्षा विभाग की वित्तायुक्त धीरा खंडेलवाल पहुंची।
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