
अगर आपने घंटों लाइन में लगकर और सरकारी दफ़्तरों के चक्कर काटकर पासपोर्ट बनवाया है तो इस ख़बर को पढ़कर आपको हैरानी हो सकती है. क्या आप जानते हैं कि पासपोर्ट जैसे संवेदनशील दस्तावेज़ का आवेदन आप अपने सोफ़े पर आराम से बैठकर एक ऐप के माध्यम से कर सकते थे.
मोबाइल-गवर्नेंस योजनाओं की देख-रेख करने वाले इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के संयुक्त सचिव डॉक्टर राजेंद्र कुमार का कहना है कि सिर्फ पासपोर्ट ही नहीं कई अहम सरकारी दस्तावेज़ों और पहचान पत्रों के लिए लोग मोबाइल पर आवेदन कर सकते हैं.
लेकिन ऐसी किसी सेवा का फ़ायदा क्या जिसके बारे में लोगों को पता ही न हों?
यही सवाल हमने डॉक्टर राजेंद्र कुमार से पूछा जिसके जवाब में उन्होंने कहा, “हमने ई-गवर्नेंस पर काफ़ी काम किया है, लेकिन ये सही बात है कि हमारे योजनाओं की जानकारी लोगों तक सुचारू रूप से नहीं पहुंच पाई. इस दिशा में हम लगातार कदम उठा रहे हैं.”
ट्राई के आंकड़ों के अनुसार भारत में करीब 87 करोड़ मोबाइल उपभोक्ता हैं, जबकि डेस्कटॉप और मोबाइल फ़ोन यूज़र्स मिला दिए जाएं तो 15 करोड़ लोग इंटरनेट का प्रयोग करते हैं.क्या है मोबाइल गवर्नेंस?
मोबाइल-गवर्नेंस के अंतर्गत मोबाइल फ़ोन के ज़रिए ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक सरकारी योजनाओं और उनसे जुड़ी जानकारियों को पहुंचाने की कोशिश की जाती है.
मोबाइल दूर-दराज के इलाकों और गांवों में भी अब आम हो चले हैं, इसलिए इसके ज़रिए लोगों तक सुविधाएं पहुंचाना पहले के मुकाबले काफ़ी आसान हो गया है.
सूचना के अधिकार की जानकारी, आधार कार्ड और बैंक से संबंधित जानकारियां, वोटर आई डी बनवाने के लिए जानकारियां, यहां तक कि नरेगा से संबंधित जानकारी भी मोबाइल के ज़रिए लोगों तक पहुंचाई जा रही है.
सरकार का दावा है कि भारत में मोबाइल के माध्यम से रोज़ाना 30 लाख लोगों तक सरकारी सेवाएं पहुंचती हैं.
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