इंदौर. “मेरे पिता प्रोफेसर रहे हैं। उनसे मुझे ज़िंदगी के सबक मिले हैं। उनकी कही एक बात मैं कभी नहीं भूलता कि, जितना तुम ज़मीन से जुड़े रहोगे, उतनी ऊंची तुम्हारी उड़ान होगी। अपनी शुरुआत कभी मत भूलना। नज़रें आसमान पर रखना लेकिन पैर वहीं जमे रहने देना जहां से चले थे। अहंकार सब खत्म कर देता है। इससे बचना। मैं इसी फलसफे को आर्ट ऑफ लिविंग मानता हूं।’ हम कई बड़े एक्टर्स को कहते सुनते हैं कि अपने आसपास की चीज़ों को ऑब्ज़र्व करो। कई किरदार मिल जाएंगे। जब उसी तरह का कोई किरदार मिलेगा तो इम्प्रोवाइज़ कर पाएंगे। दबंग में जो मैंने छेदीसिंह का किरदार निभाया है वह मेरा दोस्त था। भैयाजी स्माइल बोलकर फोटो खींचनेवाला कैरेक्टर भी मैंने ही सुझाया था। मेरा एक दोस्त था जो हर किसी को ऐसे कहकर अपने कैमरे में तस्वीरें लेता था। मैंने रीडिंग के दौरान इनके बारे में बताया और सलमान को दोनों किरदार बहुत अच्छे लगे। एक्टिंग असल में आब्ज़र्वेशन का ड्रामाटिक प्रोजेक्शन ही है। मैंने इलेक्ट्रॉनिंक इंजीनियरिंग की है। हालांकि सेकंड इयर में मैं समझ गया था कि मैं इसके लिए तो नहीं बना हूं। कॉलेज के फैशन शो में लगा कि कैमरे से कुछ पुराना कनेक्शन है। फिर धीरे-धीरे शुरुआत हुई। इंडस्ट्री में पहचान बनाने में देर लगी लेकिन यक़ीन था कि किस्मत में होगा तो मिलेगा ज़रूर। आज भी हर फिल्म डेब्यू फिल्म की तरह करता हूं। आलोचनाओं से बेचैन नहीं होता बल्कि सुधार लाने के लिए उन पर खास ध्यान देता हूं।
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