इंदौर. एक तरफ जहां शिक्षित युवाओं में मोटी सैलरी पाने के लिए होड़ मची हुई है वहीं कुछ ऎसे भी युवा हैं जो समाज सेवा के लिए लाखों रूपए की नौकरी छोड़ रहे हैं। आईआईटी बॉम्बे के 2010 बैच के प्रत्युष राठौड़ गुड़गांव में एक कंपनी में नौकरी करते थे, जिसका हेड क्वॉर्टर न्यू यॉर्क में है। उनको 44 लाख का पैकेज मिल रहा था, साथ में भत्ता भी। लेकिन, उन्होंने पढ़ाने के अपने सपने को पूरा करने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी। माता-पिता के विरोध के बावजूद राठौड़ ने तीन साल तक आईआईटी की प्रवेश परीक्षा पास करने के लिए छात्रों को कोचिंग दी और अब मध्यप्रदेश के शिरले गांव में स्कूल बनाने में जुटे हैं। प्रत्युष का कहना है कि होमटाउन में स्कूल खोलने में ज्यादा परेशानी नहीं है, उन्हें ऐसा स्कूल खोलना है जैसे थ्री ईडियट्स में आमिर खान ने खोला था। जहां बच्चों को स्कूल जैसा माहौल नहीं मिलेगा। इसके तहत उन्हें प्रिंसिपल्स और टीचर्स में लीडरशिप क्वालिटी लाने के लिए छोटे शहरों के स्कूलों में प्रशिक्षण देना होता है। कुछ छात्रों का मानना है कि कैम्पस प्लेसमेंट से बेहतर फैलोशिप प्रोग्राम्स हैं क्योंकि इस फैलोशिप से उन्हें वह कोर्स पढ़ने का मौका मिलता है जिसे वे आईआईटी में नहीं पढ़ सके। ये स्टूडेंट्स अपनी स्किल्स का इस्तेमाल समाज में परिवर्तन लाने के लिए कर रहे हैं।
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