
इंदौर. आरएसएस मुखिया डॉ. मोहनराव भागवत ने दुनिया के 45 देशों से आए प्रतिनिधियों से आह्वान किया कि वे अपने-अपने देश में भारतीय संस्कारों के साथ ऐसा माहौल बनाएं कि वहां के लोग भी अपने-अपने देश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना करें। दुनिया इस वक्त पूंजीवाद, आतंकवाद, संकीर्णवाद के संघर्ष में फंसी हुई है। इस संघर्ष और असमानता का एकमात्र समाधान भारतीय जीवन दर्शन से है।
भागवत शनिवार को शहर के एमरल्ड हाईट्स स्कूल में विश्व संघ शिविर को संबोधित कर रहे थे। पांच दिनी शिविर के समापन पर इसरो के पूर्व अध्यक्ष माधवन नायर भी मौजूद थे। अमेरिका, ब्रिटेन, नीदरलैंड, म्यांमार, नेपाल, हांगकांग, न्यूजीलैंड, सूरीनाम के संघ चालक शिविर में मौजूद थे।
इसरो के पूर्व अध्यक्ष माधवन नायर ने कहा, दुनिया में हम नॉलेज के मामले में सबसे ऊपर हैं। ऋषि परंपरा से यह ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी चला। ज्योतिष, आयुर्वेद का ज्ञान अद्भुत है। ग्रह नक्षत्रों की गणना और उनका ज्ञान साधनों के बिना अतीत में हमारे ऋषि-मुनियों ने पा लिया था।
विदेशी धरती पर संघ की पहली शाखा पानी में लगी और वह भी चलती बोट पर। बात 1947 की थी। तब अफ्रीका में रेलवे लाइन का काम करने कई लोग देश से वहां गए। इसमें पंजाब का एक युवक भी था। सफर 25 दिन का था। इस दौरान उसे एक दिन मातृभूमि की याद आई तो वह उठा, बोट पर खड़ा हुआ और भारत की तरफ मुंह कर मातृभूमि की प्रार्थना करने लगा। जब प्रार्थना खत्म हुई तो उसने देखा एक और युवक उसके पीछे खड़ा था। जिसने प्रार्थना गाई, वे पंजाब के थे और जो पीछे खड़े थे वे गुजरात के थे। पंजाब वाले आज भी जीवित है और 91 वर्ष के है।
डॉ. आंबेडकर ने कहा था कि उन्होंने स्वतंत्रता, बंधुता, समानता जैसे शब्द फ्रांस की राज्यक्रांति से नहीं लिए, बल्कि भारत की धरा पर जन्मे भगवान बुद्ध के विचार से प्राप्त किए।
अंग्रेज हमारी शिक्षा पद्धति ले गए। वे जब यहां आए, तब यहां 70 प्रतिशत साक्षरता थी। वहीं ब्रिटेन में मात्र 17 प्रतिशत। अब वहां साक्षरता की दर 70 फीसद हो गई और हम पिछड़ गए। अंग्रेज चाहते थे ये सदा गुलाम बने रहे।
दुनिया हमें सोने की चिडिय़ा कहती थी। यहां कोई भिखारी नहीं था और न चोर। लोग ताला नहीं लगाते थे। हमने दुनिया को आयुर्वेद, गणित और भौतिक ज्ञान, संस्कृति, मूल्य धर्म दिया।
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