
इंदौर. चाइनीज इकोनॉमी में शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के बीच इंडस्ट्रियल और कल्चर बैलेंस देखने को मिलता है। आप चाइना के बारे में जितनी स्टडी करेंगे आप को लगेगा कि इस देश के बारे में और अधिक पढऩे की जरूरत है। यह कहना है लेफ्टिनेंट जनरल एसएल नरसिम्हन का। वे बुधवार को आईआईएम इंदौर में ‘चाइना की अर्थव्यवस्था का विकास झूठ या हकीकतÓ विषय पर आयोजित वर्कशॉप को संबोधित कर रहे थे।
नरसिम्हन ने कहा कि चाइना में कल्चरल रिवॉल्यूशन, देश की इकोनॉमी में हुए बदलाव में माइलस्टोन साबित हुआ है। चाइना ने 10 साल के लिए प्लान बनाए थे और कुछ टारगेट सेट किए थे। प्रायोरिटी में हुए बदलाव और स्पेशल इकोनॉमिक जोन के निर्माण के कारण यह प्लान ठीक तरह से काम नहीं कर पाए।
चाइना के मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि वे लो प्रोडक्शन कॉस्ट पर वैल्यू ऐडेड प्रोडक्ट्स तैयार करते हैं। उन्होंने कहा कि चाइना दूसरे देशों से रॉ मटेरियल इम्पोर्ट करके लो प्राइज में प्रोड्यूज करते हैं और फिर प्रोडक्ट को एक्सपोर्ट करके अच्छा रेवेन्यू जेनरेट करते हैं। मंदी के बाद चाइना ने अपने ट्रेड को बैलेंस कर महंगाई को कंट्रोल रखा। इस बात से उन्हें डोमेस्टिक कंजम्पशन को बढ़ाने का अहसास हुआ। नरसिम्हन ने कहा कि प्रो एक्टिव इनवेस्टमेंट, खेती योग्य भूमि में बढ़ोतरी, फॉरेन एक्सचेंज पॉलिसी, लेबर की उपलब्धता जैसे फै क्टर आने वाले साल में इकोनॉमी में मेजर रोल प्ले करने वाले हैं।
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