
महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों पर अंकुश लगाने के लिए शहर के कुछ युवाओं ने मिलकर एक फिल्म बनाई है। फिल्म का नाम है मैं जीऊं कैसे? एक स्कूल की छात्रा का यही सवाल समाज और सरकार से है कि आखिर एक महिला या एक लड़की कैसे जिए? कब तक छेड़छाड़, अश्लील हरकतें, फब्तियां कसना और बुरी नजर से देखने वालों की प्रताडऩा झेलना होगी। यह एक शॉर्ट फिल्म है, जिसे खासतौर पर महिला दिवस पर प्रदर्शित किया जाएगा।
चिन्मय शर्मा और इंजीनियरिंग कर रहे हेमंत रघुवंशी ने कहा स्कूल, कॉलेज की स्टूडेंट और महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और दुष्कर्म के बढ़ते मामलों को देखते हुए ये फिल्म बनाई है। इसकी शूटिंग 2 जनवरी से शुरू की थी, लक्ष्य यही था कि कैसे भी इसे महिला दिवस के मौके पर प्रदर्शित कर दिया जाए। फिल्म की शूटिंग विजयनगर चौराहा, अन्नपूर्णा रोड और स्कीम नंबर 54 क्षेत्र में की गई है। इसमें 15 युवाओं के कैरेक्टर्स हैं। फिल्म की एडिटिंग का काम चल रहा है। ये महज 8 मिनट की है।
इस फिल्म में महाराष्ट्र की 20 वर्षीय छात्रा सुषमा स्टोनकर मुख्य किरदार के रूप में हैं। फिल्म में बताया गया है कि माता-पिता काम में व्यस्त होने के चलते अपनी बेटी को स्कूल छोडऩे नहीं जा पाते हैं तो उस एक दिन में उसका सड़क से गुजरना कितना मुश्किल हो जाता है। बेटी की पीड़ा सुनने के बाद पिता का देहांत हो जाता है और वो 10वीं कक्षा की बच्ची, जिसकी उम्र मात्र 16 वर्ष है, खुद से, समाज से और सुरक्षा का दावा करने वाली सरकार से यही प्रश्न करती है कि आखिर एक लड़की कैसे जीए?
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