
बदला इंसान का सबसे मीठा भाव होता है। साबिर खान ने इस सोच को केंद्र में रखते हुए ‘बागी’ को एक्शन को समर्पित कर दिया है। खासतौर पर कलरीमपयट्टू को। यह सभी मार्शल आर्ट विधाओं की जननी है। 1542 में जब बौद्ध भारत से चीन गए थे तो वहां के लोगों ने इसे आत्मसात किया था। वहां का शाऊलिन मंदिर इस कला का मक्का माना जाता है। कलरीपयट्टू में शारीरिक ताकत, उसका संतुलन व मानसिक एकाग्रता का बेजोड़ मेल होता है। इसके दक्ष लोग निहत्थे ही दुश्मन की पूरी फौज तक नेस्तनाबूत करने की क्षमता रखते है। महज ऊंगलियों की जादूगरी से दिमाग की नसें व शरीर के अलग-अलग हिस्सों की मजबूत हड्डियों को चटकाया जा सकता है। इन्हीं खूबियों की वजह से पूरी फिल्म में यह छाई हुई है।
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