
10 वीं बोर्ड में 54 प्रतिशत अंक कोई बड़ी उपलब्धि ना लगे लेकिन ये एक अविश्वसनीय हो जाती है जब एक छात्रा दिन के 8 घंटे ईंटें उठाने में बिता देती है और कुछ समय घर का काम भी करने के बाद दिन में केवल दो घंटे ही पढ़ पाती है। झारखंड के नयातोली गांव की 16 साल की मीरा खोया ने ऐसे ही अपने गांव का नाम रोशन किया है।
मीरा एक कंस्ट्रक्शन साइट पर 9 साल की उम्र से हेल्पर का काम कर रही है। 12 साल पहले जब उसके किसान पिता की मौत के बाद घर की जिम्मेदारी तीनों बच्चों के ऊपर आ गई। मां की भी कमाई फुटकर कामों की वजह से बहुत कम थी।
लेकिन पढ़ाई परिवार की लिए जरूरी होती है इसलिए मीरा ने एक निजी स्कूल में दाखिला ले लिया जिससे कि वो काम और पढ़ाई दोनों कर सके चार दिन काम और तीन दिन पढ़ाई। इस साल गर्मी में उसकी रोज की कमाई के 200 रुपये में से कुछ हिस्सा उसके भाई के कॉलेज की फीस को गया। अमन खोया ने हाल ही में बारहवीं बोर्ड की परीक्षा दी है फुटबॉलर बनना चाहता है।
‘मैं पुलिस अफसर बनना चाहती हूं।’ मीरा ने कहा , ‘मैं डॉक्टर भी बन सकती थी लेकिन मेरे पास पैसे नहीं हैं इसलिए मैं पुलिस में जाऊंगी।’ मीरा की मां पहालो खोया ने कहा,’मैं आशा करती हूं की वह पुलिस अफसर या डॉक्टर या जो भी चाहे बन जाए। वह हमारी गरीबी दूर करना चाहती है। मुझे लगता है कि वह बहुत ही बहादुर लड़की है।’
रोज ,सुबह मीरा कंस्ट्रक्शन साइट जाने के लिए ऑटो पर 20 रुपये खर्च करती है। काम पर जाने से पहले वह घर के सारे काम करती है और घर परआने के बाद और ज्यादा काम करती है. पिछले हफ्ते से उसकी14 साल की बहन अंशु भी काम पर आ रही है।
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