Rupali Parihar
Student of Masscom
IPS Academy
रोज सुबह जीवा के घर का माहौल बिल्कुल एक रेलवे स्टेशन पर लेट लतीफ भागते दौड़ते यात्रियों की तरह नजर आता है रोज की तरह आज भी जीवा के माता-पिता बड़ी हड़बड़ाहट के साथ अपने सारे काम कर रहे थे, शिवा की मां आकृति खूबसूरत, महत्वाकांक्षी और आधुनिक वर्किंग वूमेन है l
जीवा के पिता अविनाश भी पढ़े लिखे और समझदार इंसान है, दोनों माता-पिता का मेट्रो सिटी में आधुनिक दंपतियों की तरह ही गुजर-बसर था, सब कुछ पा लेने की चाह में बिना मंजिल की रेस का हिस्सा बना देती है चुपचाप बड़ी मासूमियत के साथ आकृति और अविनाश को घर में दौड़ लगाते हुए देखती रहती कभी आकृति तेज कदमों से किचन में जाकर गैस बंद करती तो कभी रूम में जाकर ऑफिस की फाइल तलाश थी गाड़ी की चाबी वक्त रूप में जाकर वापस दौड़ते हुए घर में आ कर अपने जरूरी डाक्यूमेंट्स लेते बीच में कृष्णा भाई घर में आती जो शिवा के घर के सारे काम करने के साथ जीवा का ध्यान भी रखती कृष्णाबाई के घर में आते ही मानव आकृति और अविनाश की भागती हुई गाड़ी को रास्ते में स्पीड ब्रेकर मिल गए हो रुक रुक कर चलने लगी पर चलना जारी था रुक रुक कर इसलिए चल रही थी क्योंकि अब घर में आकृति और अविनाशी नहीं कृष्णाबाई भी अपने पोछे की बाल्टी लेकर इस रेस में बराबर की भागीदारी दिखा दे दिखाई दे रही थी कभी-कभी तो यूं लगता कि सच में कोई रेस ही चल रही है कि कौन सा अपने सारे काम खत्म कर पहले घर से बाहर निकलेगा लेकिन यहां भागदौड़ भरी जिंदगी कोई बड़ी बात नहीं थी जहां जिंदगी इस तरह रफ्तार में भक्ति है जहां रफ्तार थम ती है तो सिर्फ ट्रैफिक जाम में आकर पर हर कोई रफ्तार का इस कदर आदी हो गया है कुछ मिनटों का यह ठहराव हर किसी को परेशान कर कर देता है अभी मात्र 7 साल की है इसलिए अभी उसे सिर्फ इस भाग दौड़ भरी जिंदगी को देखने की आदत नहीं थी भागदौड़ का हिस्सा बनने से थोड़ा समय दूर है ऑफिस जाने के लिए निकल चुके थे कृष्णाबाई अपना खत्म करने में लगी हुई थी घर से बाहर निकल पाने के मौके बहुत कम मिलते थे क्योंकि आकृति और अविनाश को अपने काम से टाइम नहीं मिलता था और कृष्णा बाय अपने काम में जल्दी से जल्दी खत्म करने की कोशिश में लगी रहती थी जीवा का जिज्ञासाओं से भरा बालमन तो जैसे हवाओं के साथ बहना चाहता था, जीवा हमेशा अपनी खिड़की से बाहर दुनिया को निहारा करती थी कभी खुद को बेहद अकेला महसूस करती थी पर दिल से दिल के इस अकेलेपन को वह आते हुए भी किसी से नहीं कह पाती थी क्योंकि आकृति और अविनाश के पास तो अपनी बेटी जीवा के लिए कुछ मिनटों का भी समय नहीं था, जीवा के छोटे से बड़े सारे काम तो कृष्णाबाई द्वारा किए जाते थे सारे काम अपनी जिम्मेदारी समझकर निपटा ही लेती थी, हर बीते हुए दिन के साथ अपने अंदर की गहराइयों खोती जा रही थी उस दिन कृष्णाबाई अपने काम में मग्न होकर काम कर रही थी और यहां जीवा घर के दरवाजे से कुछ दूर खड़ी बाहर देख रही थी लेकिन बचपन आजाद परिंदे की तरह है जिसे कोई प्यार नहीं कर सकता जीवा बेखौफ कदम बढ़ाते हुए घर के बाहर निकल जाति को आवाज लगाने लगाते हुए पूरे घर में ढूंढती है ना मिलने पर कृष्णाबाई घबराते हुए घर के पास आसपास पड़ोसियों से जीवा के बारे में पूछने लगती है अविनाश को फोन लगा कर के ना मिलने की बात बताती है आशा के बारे में पता चलता है और ना मिलने क अविनाश को फोन लगा कर के ना मिलने की बात बताती है, तू लगता है वह मानो कुछ पल के लिए बेजान से मूर्ति बन जाते हैं आकृति में फूट-फूटकर रोने लगती है लेकिन अविनाश आकृति को जीवा के मिल जाने का आश्वासन देने की कोशिश करता है अविनाश जीवा के गुम होने की रिपोर्ट थाने में दर्ज करवाता है आखिर अविनाश जीवा के होने की हर संभव जगह पर तलाश करते हैं आकृति अपने सभी रिश्तेदारों और दोस्तों को फोन लगाकर जीवा के बारे में पूछ रही थी अविनाश शहर के कोने कोने में जीवा की तलाश में लगा हुआ था कि नहीं रहा था आकृति और अविनाश भाई जान से बैठ गए जैसे किसी ने उनसे उनकी सांसो तलाशने के बाद अब कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही थी पुलिस समझ नहीं पा रही 7 साल की बच्ची आंखें जा कर सकती है आकृति और अविनाश के पास जाकर उन्हें घर जाने की सलाह देती है आकृति का दर्द गुस्से में तब्दील हो जाता है और वह पुलिस को खरी-खोटी सुनाने लगती है अविनाश आकृति को समझाते हुए संभालता है और घर लेकर आता है कार में भी सुध बुध खो कर भी जैसी बैठी रहती है अविनाश आकृति को सहारा देकर कार से बाहर निकालता है और मदद करता है जैसी अविनाश अपनी नजरें ऊपर उठाता है सामने गिलहरी के पीछे दौड़ती हुई कूदती फूलती उसे जीवा नजर आती है भारी आवाज में जब धीरे से जीवा कहता है तो आकर देख तुरंत अविनाश को देखते हुए जीवा को देखती है और उसके पास दौड़ कर गले लगा कर जीवन को अपनी बाहों में भर लेती है प्रकृति रोते हुए जीवा को प्यार करते हैं पर jiwa हर बात से अनजान थी तुतला हट भरी आवाज से पूछ लेती है रो क्यों रहे हो जीवा को गले लगाते हुए कहती है हमें लगा था आप हमसे बहुत दूर चले गए हो इसलिए हम डर गए थे जीवा अविनाश आकृति के आगे जीवा को प्यार से कहता है हम आपके बिना बहुत अकेले हो जाते हैं बेटा मासूमियत के साथ बोलती है पता है आपको मैं तो रोज अकेली सोती हूं और अब मैं नहीं डरती, रोती भी नहीं मतलब मैं गुड गर्ल हूं ना मम्मा ! आकृति और अविनाश की आंखें भर आई क्योंकि छोटी सी बच्ची ने बहुत कम शब्दों में बड़ी मासूमियत के साथ में गहरी बात समझा दी थी आकृति और अविनाश को इस बात का एहसास हो चुका था कि उनकी मंजिल का है सिर्फ jiwa ही है रेस का हिस्सा सब जीवा के लिए ही थे पर अब कोई रेस नहीं थी उनकी जिंदगी दौड़ नहीं रही थी बल्कि हंसते मुस्कुराते हुए चल रही थी क्योंकि उन्हें यह बात पता चली थी कि उनका रास्ता और उनकी मंजिल उनकी बेटी है
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